एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 13 August 2017
दिन भर भागता हूँ
दिन भर भागता हूँ
शब भर जागता हूँ
कई घाव हैं सीने में,
तभी तो कराहता हूँ
तू चाँद है और दूर है
ये बात मै जानता हूँ
तेरी, झील सी आँखे
थोड़ा आब चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---
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