ख़ाक में मिलेंगे, फूल बन के खिलेंगे
खशबू बन कर तुझसे से ही लिपटेंगे
सूरज से कहेंगे आब सा हमें सोख ले
बादल बनेंगे और तेरे दर पे ही बरसेंगे
ग़र, ख़ुदा जो मिल जाये किसी दिन
कुछ और नहीं उससे, तुझे ही माँगेंगे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
खशबू बन कर तुझसे से ही लिपटेंगे
सूरज से कहेंगे आब सा हमें सोख ले
बादल बनेंगे और तेरे दर पे ही बरसेंगे
ग़र, ख़ुदा जो मिल जाये किसी दिन
कुछ और नहीं उससे, तुझे ही माँगेंगे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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