प्रेम
अगर 'ठोस' होता
सोने जैसा
गढ़ लेता एक 'मुंदरी'
तुम्हारे नाम की
अगर
प्रेम तरल होता
जल जैसा
ले कर अंजुरी में
आचमन कर लेता
तुम्हारे नाम से
गर होता 'प्रेम' वायु
बस जाता तुम्हारी साँसों में
चंदन बन के
जो होता 'प्रेम' पंचतत्व
तो पृथ्वी से जल
जल से वायु
वायुं से आकाश
आकाश से आत्म तत्व बन
मिल जाता तुझमे परमतत्व तत्व की मानिंद
हमेशा हमेशा के लिए
मुकेश इलाहाबादी ------------
अगर 'ठोस' होता
सोने जैसा
गढ़ लेता एक 'मुंदरी'
तुम्हारे नाम की
अगर
प्रेम तरल होता
जल जैसा
ले कर अंजुरी में
आचमन कर लेता
तुम्हारे नाम से
गर होता 'प्रेम' वायु
बस जाता तुम्हारी साँसों में
चंदन बन के
जो होता 'प्रेम' पंचतत्व
तो पृथ्वी से जल
जल से वायु
वायुं से आकाश
आकाश से आत्म तत्व बन
मिल जाता तुझमे परमतत्व तत्व की मानिंद
हमेशा हमेशा के लिए
मुकेश इलाहाबादी ------------
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