गुस्सा चाँद की बदगुमानी पे आता है
रह- रह कर प्यार भी उसी पे आता है
बार बार क्यूँ चूम लेती है गुलाबी होंठ
गुस्सा मुझे उसकी नथुनी पे आता है
है ज़िन्दगी उसके बगैर बीती जा रही
रह रह गुस्सा ऐसी ज़िंदगी पे आता है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
रह- रह कर प्यार भी उसी पे आता है
बार बार क्यूँ चूम लेती है गुलाबी होंठ
गुस्सा मुझे उसकी नथुनी पे आता है
है ज़िन्दगी उसके बगैर बीती जा रही
रह रह गुस्सा ऐसी ज़िंदगी पे आता है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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