हवाएं
चुपचाप बहती हैं
दे जाती हैं - ताज़गी
फूल खिलते हैं
चुपचाप
दे जाते हैं - झऊआ भर खुशबू
धरती
उठाती है हमारा बोझ
चुपचाप
हम कब सीखेंगे,
करना बहुत कुछ
और रहना चुपचाप ?
मुकेश इलाहाबादी -----------
चुपचाप बहती हैं
दे जाती हैं - ताज़गी
फूल खिलते हैं
चुपचाप
दे जाते हैं - झऊआ भर खुशबू
धरती
उठाती है हमारा बोझ
चुपचाप
हम कब सीखेंगे,
करना बहुत कुछ
और रहना चुपचाप ?
मुकेश इलाहाबादी -----------
No comments:
Post a Comment