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Monday, 18 June 2018

कुंडली मिलान

भारतीय समाज  में विवाह के पहले कुंडली मिलान की परम्परा बहुत पुरानी  है , कई परिवारों में तो बिना कुंडली मिलान के विवाह ही सम्पन्न नहीं होता।   लिहाज़ा इस के चलते कई बार अच्छे अच्छे जोड़े बिछड़ने को मज़बूर हो जाते हैं , और गलत जोड़े भी बन जाते हैं फिर ज़िंदगी भर  कलहपूर्ण और दुःखद
दाम्पत्य जीवन जीने को  वे मज़बूर हो जाते हैं।  इसी सब को देखते हुए ये वीडियो बनाने का निर्णय लिया है ताकि हमारे दर्शक और मित्र ' कुण्डली मिलान "
पद्धति को वैज्ञानिक और आधुनिक परिपेक्ष में समझ देख के उचित निर्णय ले सकें और दो जीवन को बर्बाद होने से बचा सकें और खुद भी शंका कुशंका के
भंवर से बाहर निकल सकें।
अगर देखा जाए तो वास्तव में भारतीय ज्योतिष पद्धति से कुंडली मिलान एक वैज्ञानिक और सम्पूर्ण पद्धति है , अगर भावी वर वधु की कुंडली सही बनी है ,
और विचार करने वाला दैवज्ञ वास्तव में ज्ञानी है और सही तरह से मिलान करता है तो भावी दम्पति के लिए सही निर्णय दे कर उन्हें उचित रास्ता दिखा सकते हैं।
खैर अब हम अपने विषय पे आते हैं , कुंडली मिलान पद्धति में चंद्र कुण्डली के अनुसार आठ विषयों पे विचार किया जाता हूँ - जिन्हे हम 'अष्टकूट " कहते हैं  जो निम्न क्रम में होते हैं जिनका जो क्रम होता है उस गुण के उतने ही भी अंक होते हैं।
इनके क्रम निम्न हैं

1 ) वर्ण
2 ) वश्य
3 ) तारा
4 ) योनि
5 ) ग्रह - मैत्री
6 ) गण
7 ) भकूट
8 ) नाड़ी

अब जैसे पहला गुण है - वर्ण - इसके मिलने पे 1 अंक होता है।  वश्य का 2 , तारा  का 3 , योनि का 4 , ग्रह मैत्री का 5 , गण का 6 , भकूट का 7 और नाड़ी के 8 अंक होते हैं -
अब इनके सारे अंको को जोड़े तो देखते हैं 1+2+3+4+5+6+7+8 = 36  इस तरह 36 गुणों का मिलान होता है।
अब अगर 30  से 36  गुण मिलते हैं तो अति उत्तम , 25  से 30  तक उत्तम ,20  से 25  तक सामान्य और इससे कम गुण मिलने पर शुभ नहीं माना जाता है ,
और विवाह को उचित नहीं  माना जाता है। और पूरे 36 गुण मिलना अच्छा नहीं माना जाता - कम से कम नाड़ी दोष तो होना ही चाहिए वर्ना वर वधु में ये 36 गन हमेसा 36 का आंकड़ा रखेंगे और सुखद वैवाहिक जीवन की आशा नहीं करनी चाहिए। 
किन्तु व्यावहारिक दृष्टिकोण से - और बिन्दुओ पे भी विचार किया जाना चाहिए जैसे वर वधु की कुंडली में वैधव्य या विधुर होने के योग तो नहीं हैं - या वर
या वर वधु का स्वास्थ्य कैसा है - किसी कि कुंडली में और कोइ बुरे योग तो नहीं हैं जैसे - कालसर्प योग , मांगलिक योग या पितृ दोष तो नहीं हैं , इसके अलावा और ग्रहो की आपस में  स्तिथि क्या है - वे आपस में मैत्री भाव रखते हैं या नहीं -
लिहाज़ा अगर कुंडली सही नहीं है और सम्यक रूप से विचार नहीं किया गया है तो कुंडली मिला कर सिर्फ एक शंका ही उत्पन्न करना होगा और दो लोगों की ज़िंदगी ख़राब की जा सकती है - विवाह कर के या न कर के।
मेरा व्यक्तगत मत तो है - अगर वर वधु एक दुसरे को पसंद करते हैं - एक दुसरे की सामाजिक , पारिवारिक , मानसिक शैक्षिक और दूसरी बातें मिल रही हों या इनपे सहमति बनती है तो कुंडली मिलान का हठ नहीं करना चाहिए , क्यूँ की बहुत बार हमने कुंडली मिलान कर के विवाह करने के बाद भी बहुत से जोड़ों को दुःख ही झेलते देखा है।
अब हम इन गुणों पे एक एक कर के विचार करेंगे।


सनातन धर्म के विद्वानों ने जैसे मनुष्यों को उनके मूल प्रवृति के आधार पे चार वर्णो में बांटा है, ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैष्णव और शूद्र उसी तरह से ज्योतिष
विज्ञानं में भी ग्रहों को उनके गुण धर्मो के आधार पे चार वर्णो में बांटा गया है - ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण से क्षत्रिय को कुंडली मिलान में काम अंक दिए जाते हैं इसी तरह वैश्य को क्षत्रिय से कम और शूद्र को सबसे काम अंक दिए जाते हैं।  वर का अंक या वर्ण हमेसा ऊपर होना चाहिए या कह लो वर का वर्ण अंक वधु से ज़्यादा होना चाहिए।  ये इस सिद्धांत से बना है की अगर वर का वर्ण वधु से ज़्यादा होगा तभी वो वधु को आने अधिकार में रख के या समझा कर गृहस्थ बेहतर ढंग से चला सकता है। 
अब आप को बताते हैं ज्योतिष के अनुसार -
 कर्क - बृश्चिक - मीन -- ब्राह्मण राशियाँ हैं
मेष - सिंह - धनु -- क्षत्रिय राशियाँ हैं
ब्रश - कन्या - मकर -- वैश्य राशियाँ हैं
मिथुन - तुला - कुम्भ -- शूद्र राशियाँ हैं
ये चारों वर्ण और बारहों रशियन 16  संयोग में 6 संयोग में 0 अंक मिलने से वर्ण गुण दोष बनता है। 
आगे इस विषय पे विस्तार से अगले वीडियो पे चर्चा करेंगे।

इसके बाद दूसरा कूट - वश्य आता है।
जैसे बारहो राशियों को चार वर्णो में बांटा गया है उसी तरह - बारहों राशियों को चार वश्य में विभाजित किया गया है।  ये वश्य हैं - द्विपद - अर्थात दो पैरों से चलने वाला - चतुष्पद - यानि चार पैरों से चलने वाला - कीट - यानि कीड़े - वनचर - वन में रहने वाले और जल चर - मछली , मगरमच्छ आदि - इन्हे भी इन्ही क्रम में अधिक से कम अधिक से कम अंक दिए जाते हैं - इसमें दोनों की चंद्र राशि को देखा जाता है - अगर वर की चंद्र राशि का वश्य वधु की चंद्र राशि से कमतर है तो दोष वर्ण शुभ माना जायेगा -
पर अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो 35 40 परसेंट कुंडलियों के वर्ण दोष और 25 से 30 परसेंट कुंडलियों में वश्य दोष पाया जाता है - इसका मतलब इतने परसेंट कुंडलियों को महज़ इस दोष के कारन विवाह न करना चाहिए - जो की उचित नहीं है -
और फिर वर्ण और वश्य मिलान तो कुंडली मिलान का एक छोटा सा हिस्सा हैं सिर्फ इस दोष के कारण विवाह न किया जाये या सफल और असफल होने का अनुमान किया जाये  ये बात  ावैगेनिक लगती है।
इसी तरह हम अगले गुण - तारा , योनि , गृह मैत्री गण भकूट और नाड़ी दोषों के बारे में भी समझ सकते है जिन्हे हम आगे समझते जायेंगे
अब तक आप को ये बात तो समझ में आ ही गयी होगी कि कुण्डली मिलान में आठ गुणों का मिलान करते हैं - जिन्हे 'अष्टकूट ' कहते हैं -
और सिर्फ एक कूट के न मिलने पे विवाह को असफल नहीं मान लेना चाहिए

तारा - गुण
ये तीसरा कूट है - कुंडली मिलान में - तारा मिलान को महत्वपूर्ण माना गया है - जैसा की आप सभी इतना तो जानते ही होंगे की हमारे यहाँ ज्योतिष में 28 नक्षतों की कल्पना की गयी है -
जातक के जन्म नक्षत्र को पहला तारा माना जाता है और इसे जन्म तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र को सम्पत तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से तीसरे नक्षत्र को विपत तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से चौथे नक्षत्र को क्षेम तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से 5वें नक्षत्र को प्रत्यरि तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से 6वें नक्षत्र को साधक तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से 7वें नक्षत्र को वध तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से 8वें नक्षत्र को मित्र तारा कहा जाता है।

जातक के जन्म नक्षत्र से 9वें नक्षत्र को अति मित्र तारा कहा जाता है।

                  जन्म से 10वें नक्षत्र को पहले नक्षत्र से संबंधित तारा, 11वें नक्षत्र को दूसरे नक्षत्र से संबंधित तारा तथा इसी प्रकार अन्य सभी नक्षत्रों को भी एक तारा के साथ जोड़ा जाता है। वैदिक ज्योतिष के नियम के अनुसार जन्म नक्षत्र से 3, 5 तथा 7वें ताराओं को अशुभ माना जाता है। इसलिए गुण मिलान करते समय यदि वर के जन्म नक्षत्र से गिनने पर वधू का जन्म नक्षत्र 3, 5 अथवा 7 हो तो इसे अशुभ माना जाता है तथा इसी प्रकार यदि वधू के जन्म नक्षत्र से गिनने पर वर का जन्म नक्षत्र 3, 5 अथवा 7 हो तो इसे भी अशुभ माना जाता है। इस प्रकार वर तथा वधू के जन्म ताराओं का परस्पर संबंध देखा जाता है तथा उसी के आधार पर तारा कूट मिलान के अंक अथवा गुण प्रदान किये जाते हैं। यदि वर तथा वधू दोनों के लिए ही तारा शुभ है तो तारा मिलान के 3 में से 3 अंक प्रदान किये जाते हैं तथा वर वधू के ताराओं की शुभता के कम होने के साथ ही तारा मिलान के अंक भी कम हो जाते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि वर तथा वधू दोनों का परस्पर तारा कभी एक साथ अशुभ नहीं होता क्योंकि वर तथा वधू के परस्पर ताराओं का योग सदा ही 9 अथवा 0 आता है तथा उपर बताए गए अशुभ ताराओं अर्थात 3, 5 अथवा 7 में से किसी भी दो ताराओं का योग 9 अथवा 0 नहीं होता। विभिन्न प्रकार के ताराओं के मिलान के लिए 9 प्रकार के संयोग बन सकते हैं तथा ये संयोग 0-0, 1-8, 2-7, 3-6, 4-5, 5-4, 6-5, 7-2, 2-7 तथा 1-8 हैं। दोनों में से एक तारा के अशुभ होने से कुंडली

मिलान में तारा दोष बन जाता है जैसे कि 3-6 अथवा 4-5 तारा होने की स्थिति में। तारा दोष को वैदिक ज्योतिष के अनुसार बहुत अशुभ माना जाता है जिसके कारण विवाह भंग हो सकता है अथवा वर वधू में से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।

इसी तरह चौथा - कूट 'योनि ' होता है
सबसे पहले आइए यह देखते हैं कि योनि नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। प्रत्येक जन्म कुंडली में चन्द्रमा सताइस नक्षत्रों में से किसी न किसी नक्षत्र में उपस्थित होते हैं जिसे जातक का जन्म नक्षत्र कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष प्रत्येक नक्षत्र का संबंध किसी न किसी पशु आदि के साथ जोड़ता है तथा इसी जीव को इस नक्षत्र की योनि कहा जाता है। वर वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्र नक्षत्र की योनि को ही क्रमश: वर तथा वधू की योनि कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष विभिन्न 27 नक्षत्रों को निम्नलिखित योनियां प्रदान करता है :

अश्विनी तथा शतभिषा : घोड़ा अथवा अश्व

भरणी तथा रेवती : हाथी अथवा गज

कृतिका तथा पुष्य : बकरी अथवा भेड़

मृगशिरा तथा रोहिणी : सर्प

आर्द्र तथा मूल : कुत्ता अथवा कुकुर

पुनर्वसु तथा अश्लेषा : बिल्ली

मघ तथा पूर्वाफाल्गुनी : मूषक अथवा चूहा

उत्तराफाल्गुनी तथा उत्तरभाद्रपद : गाय

हस्त अथा स्वाति : भैंस

चित्रा तथा विशाखा : बाघ

अनुराधा तथा ज्येष्ठा : मृग

पूर्वाषाढ़ा तथा श्रवण : बंदर अथवा वानर

उत्तराषाढ़ा : नेवला

धनिष्ठा तथा पूर्वभाद्रपद : सिंह

                        वैदिक ज्योतिषी इन सभी जीवों के आपसे में संबंध के आधार पर ही योनि कूट के मिलान के लिए दिये जाने वाले अंक निश्चित करता है जिसके चलते वर वधू की योनि से संबधित जीवों के एक ही होने की स्थिति में योनि मिलान के लिए 4 में से 4, मित्र होने की स्थिति में 4 में से 3, सम होने की स्थिति में 4 में से 2, शत्रु होने की स्थिति में 4 में से 1 तथा प्रबल शत्रु होने की स्थिति में 4 में से 0 अंक प्रदान किय जाता है। योनि मिलान में 0 अथवा 1 अंक मिलने की स्थिति को योनि दोष कहा जाता है जिसके कारण वर तथा वधू में शारीरिक समानता की कमी के कारण तालमेल अच्छा नहीं रहता जिसके चलते झगड़ा, अलगाव तथा तलाक भी हो सकता है।

                       उपरोक्त विवरण से यह सपष्ट हो जाता है कि योनि मिलान के लिए कुल 5 संयोग होते हैं तथा इनमें से 2 संयोग योनि दोष बनाते हैं जिससे कुंडली मिलान के लगभग 40% मामलों में योनि दोष बन जाता है जिसके चलते लगभग 40% विवाह तो योनि दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि योनि दोष कुंडली मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि नाड़ी दोष, भकूट दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 30% से 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है। इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि योनि दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।

                इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल योनि दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल योनि दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय योनि दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण योनि दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है। इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल योनि दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से योनि दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले योनि दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।

इसके बाद ' ग्रह मैत्री ' गुण मिलान आता है
 सबसे पहले आइए यह देखते हैं कि ग्रह मैत्री नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। प्रत्येक जन्म कुंडली में चन्द्रमा बारह राशियों में से किसी न किसी राशि में उपस्थित होते हैं जिसे जातक की जन्म राशि कहा जाता है तथा इस तथा इस राशि का स्वामी ग्रह ही ग्रह मैत्री के लिए देखा जाता है। मेष तथा वृश्चिक राशियों के स्वामी मंगल को, वृष तथा तुला राशियों के स्वामी शुक्र को, मिथुन तथा कन्या राशियों के स्वामी बुध को, कर्क राशि के स्वामी चन्द्रमा को, सिंह राशि के स्वामी सूर्य को, धनु तथा मीन राशियों के स्वामी बृहस्पति को तथा मकर और कुंभ राशियों के स्वामी शनि महाराज को माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इन सभी ग्रहों के मध्य स्वभाविक मित्रता, समता तथा शत्रुता को निश्चित किया गया है तथा वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों के इन्हीं परस्पर संबंध के आधार पर ग्रह मैत्री के कूट का मिलान किया जाता है। ग्रह मैत्री के इस कूट के मिलान के लिए इस प्रकार से गुण अथवा अंक प्रदान किये जाते हैं :

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो इसे उत्तम ग्रह मैत्री मिलान माना जाता है तथा ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 5 अंक प्रदान किये जाते हैं।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: मित्र-मित्र हों तो इसे उत्तम ग्रह मैत्री मिलान माना जाता है तथा ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 5 अंक प्रदान किये जाते हैं। यहां पर मित्र-मित्र संबंध का अर्थ है कि वर की चन्द्र राशि का स्वामी ग्रह वधू की चन्द्र राशि के स्वामी ग्रह से मित्रता का भाव रखता है तथा वधू की चन्द्र राशि का स्वामी ग्रह वर की चन्द्र राशि के स्वामी ग्रह से मित्रता का भाव रखता है।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: सम-मित्र हों तो ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 4 अंक प्रदान किये जाते हैं। यहां पर सम-मित्र संबंध का अर्थ है कि वर तथा वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों में से एक ग्रह दूसरे के साथ मित्रता का भाव रखता है जबकि दूसरा ग्रह पहले के साथ समता का भाव रखता है।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: सम-सम हों तो ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 3 अंक प्रदान किये जाते हैं। यहां पर सम-सम संबंध का अर्थ है कि वर तथा वधू दोनों की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह एक दूसरे के साथ समता का भाव रखते हैं।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: मित्र-शत्रु हों तो ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 1 अंक प्रदान किया जाता है। यहां पर मित्र-शत्रु संबंध का अर्थ है कि वर तथा वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों में से एक ग्रह दूसरे के साथ मित्रता का भाव रखता है जबकि दूसरा ग्रह पहले के साथ शत्रुता का भाव रखता है।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: सम-शत्रु हों तो ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से ½ अथवा आधा अंक प्रदान किया जाता है। यहां पर सम-शत्रु संबंध का अर्थ है कि वर तथा वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रहों में से एक ग्रह दूसरे के साथ समता का भाव रखता है जबकि दूसरा ग्रह पहले के साथ शत्रुता का भाव रखता है।

यदि वर वधू की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह आपस में क्रमश: शत्रु-शत्रु हों तो ऐसे ग्रह मैत्री मिलान के लिए 5 में से 3 अंक प्रदान किये जाते हैं। यहां पर शत्रु-शत्रु संबंध का अर्थ है कि वर तथा वधू दोनों की चन्द्र राशियों के स्वामी ग्रह एक दूसरे के साथ शत्रुता का भाव रखते हैं।

           ग्रह मैत्री मिलान के जिन मामलों में 1, ½ अथवा 0 अंक होते हैं, ऐसे मिलानों में ग्रह मैत्री दोष माना जाता है जो वर वधू में मानसिक समानता की कमी को दर्शाता है जिसके चलते विवाह में तनाव, झगड़े, तर्क वितर्क तथा तलाक जैसे परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं। उपरोक्त विवरण से यह सपष्ट हो जाता है कि ग्रह मैत्री मिलान के लिए कुल 7 संयोग होते हैं तथा इनमें से 3 संयोग ग्रह मैत्री दोष बनाते हैं जिससे कुंडली मिलान के लगभग 45% मामलों में ग्रह मैत्री दोष बन जाता है जिसके चलते प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर दूसरा पुरुष या स्त्री केवल ग्रह मैत्री दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 45% विवाह तो ग्रह मैत्री दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि ग्रह मैत्री दोष कुंडली मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि नाड़ी दोष, भकूट दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 30% से 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है। इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि ग्रह मैत्री दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।

             इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल ग्रह मैत्री दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल ग्रह मैत्री दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय ग्रह मैत्री दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण ग्रह मैत्री दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है। इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल ग्रह मैत्री दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से ग्रह मैत्री दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले ग्रह मैत्री दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।

गण दोष
सबसे पहले आइए यह देखते हैं कि गण नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। प्रत्येक जन्म कुंडली में चन्द्रमा सताइस नक्षत्रों में से किसी न किसी नक्षत्र में उपस्थित होते हैं जिसे जातक का जन्म नक्षत्र कहा जाता है तथा इस नक्षत्र को प्रदान किया गया गण ही जातक का गण होता है। गिनती में गण तीन होते हैं जिन्हें क्रमश: देव गण, मानव गण तथा राक्षस गण कहा जाता है। सताइस नक्षत्रों में से नौ नक्षत्र देव गण से संबंध रखते हैं, नौ नक्षत्र मानव गण से संबंध रखते हैं तथा नौ नक्षत्र राक्षस गण से संबंध रखते हैं। इन सब नक्षत्रों का वर्णन इस प्रकार है :

वैदिक ज्योतिष के अनुसार अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण तथा रेवती नक्षत्रों को देव गण प्रदान किया गया है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी, रोहिणी, आर्द्र, पूर्व फाल्गुणी, उत्तर फालगुणी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, पूर्वभाद्रपद तथा उत्तरभाद्रपद नक्षत्रों को मानव गण प्रदान किया गया है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका, अश्लेषा, मघ, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा तथा शतभिषा नक्षत्रों को राक्षस गण प्रदान किया गया है।

             इन गणों में से वर वधू के गणों का परस्पर मिलान किया जाता है तथा इस मिलान के आधार पर इनको अंक प्रदान किये जाते हैं। इस मिलान का विवरण इस प्रकार है :

यदि वर तथा वधू दोनों के गण देव-देव, मानव-मानव अथवा राक्षस-राक्षस हों अथवा वर का गण देव तथा कन्या का गण मनुष्य हो तो ऐसे गण मिलान को उत्तम माना जाता है तथा इसके लिए 6 में से 6 अंक प्रदान किये जाते हैं।

यदि वर वधू दोनों के गण क्रमश: मनुष्य-देव हों तो ऐसे गण मिलान को सामान्य माना जाता है तथा इसके लिए 6 में से 5 अंक प्रदान किये जाते हैं।

यदि वर वधू दोनों के गण क्रमश: देव-राक्षस अथवा राक्षस-देव हों तो ऐसे गण मिलान को अशुभ माना जाता है तथा इसके लिए 6 में से 1 अंक प्रदान किया जाता है।

यदि वर वधू दोनों के गण क्रमश: मानव-राक्षस अथवा राक्षस-मानव हों तो ऐसे गण मिलान को अति अशुभ माना जाता है तथा इसके लिए 6 में से 0 अंक प्रदान  किया जाता है।

             गण मिलान में जहां 0 अथवा 1 अंक प्राप्त हो, वहां पर गण दोष माना जाता है जिसके कारण लंबे अलगाव, तलाक तथा अन्य प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकतीं हैं। वर तथा वधू दोनों की चन्द्र राशि एक ही होने की स्थिति में गण दोष का परिहार माना जाता है जैसे कि यदि वर का जन्म नक्षत्र उत्तरफाल्गुनी है तथा वधू का नक्षत्र चित्रा है तथा दोनों की ही जन्म राशि अर्थात चन्द्र राशि कन्या है तो इस स्थिति में बनने वाला गण दोष प्रभावी नहीं माना जाता हालांकि उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र मानव गण है तथा चित्रा नक्षत्र राक्षस गण।

              आइए अब किसी कुंडली में गण दोष के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से तथा किसी इस दोष के साथ जुड़े अशुभ फलों का व्यवहारिक दृष्टि से विशलेषण करें तथा इस दोष के निर्माण तथा फलादेश की सत्यता की जांच करें। उपरोक्त विवरण से यह सपष्ट हो जाता है कि गण मिलान के लिए कुल 9 संयोग होते हैं तथा इनमें से 4 संयोग गण दोष बनाते हैं जिससे कुंडली मिलान के लगभग 45% मामलों में गण दोष बन जाता है जिसके चलते प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर दूसरा पुरुष या स्त्री केवल गण दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 45% विवाह तो गण दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य लगभग किसी भी देश में कुंडली मिलान अथवा गुण मिलान जैसी प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इन देशों में होने वाला प्रत्येक दूसरा विवाह गण दोष से पीड़ित है जिसके चलते इन देशों में होने वाले विवाहों में तलाक आदि की दर केवल गण दोष के कारण ही 45% होनी चाहिए। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि गण दोष कुंडली मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि नाड़ी दोष, भकूट दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 30% से 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है। इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि गण दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।

                इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल गण दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल गण दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय गण दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण गण दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया विवाह संबंधी कोई शुभ या अशुभ योग गुण मिलान के कारण बनने वाले दोषों की तुलना में बहुत अधिक प्रबल होता है तथा दोनों का टकराव होने की स्थिति में लगभग हर मामले में ही विजय कुंडली में बनने वाले शुभ अथवा अशुभ योग की ही होती है। इसलिए कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाला मांगलिक योग अथवा मालव्य योग जैसा कोई शुभ योग गुण मिलान में गण दोष अथवा अन्य भी दोष बनने के पश्चात भी जातक को सफल तथा सुखी वैवाहिक जीवन देने में सक्षम है जबकि कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाले मांगलिक दोष अथवा काल सर्प दोष जैसे किसी भयंकर दोष के बन जाने से गण मिलने के पश्चात तथा 36 में से 30 या इससे भी अधिक गुण मिलने के पश्चात भी ऐसे विवाह टूट जाते हैं अथवा गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं।

              इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल गण दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से गण दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले गण दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।

भकूट दोष
आइए सबसे पहले यह जान लें कि भकूट दोष वास्तव में होता क्या है तथा ये दोष बनता कैसे है। गुण मिलान की प्रक्रिया में आठ कूटों का मिलान किया जाता है जिसके कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है तथा ये आठ कूट हैं, वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी तथा आइए अब देखें कि भकूट नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। किसी कुंडली में जिस राशि में चन्द्रमा स्थित होते हैं वही राशि कुंडली का भकूट कहलाती है। भकूट दोष का निर्णय वर वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की किसी राशि में उपस्थिति के कारण बन रहे संबंध के चलते किया जाता है।  यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब :

यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है।

यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है।

यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है।

             भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त अथवा कम प्रभावी माना जाता है :

यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।

यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष निर्बल रहता है क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।

इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के पश्चात भी इसका प्रभाव कम माना जाता है।

             आइए अब किसी कुंडली में भकूट दोष के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से तथा किसी इस दोष के साथ जुड़े अशुभ फलों का व्यवहारिक दृष्टि से विशलेषण करें तथा इस दोष के निर्माण तथा फलादेश की सत्यता की जांच करें। भकूट दोष की परिभाषा के अनुसार लगभग 30% कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है जिससे प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर तीसरा पुरुष या स्त्री केवल भकूट दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 30% विवाह तो भकूट दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य लगभग किसी भी देश में कुंडली मिलान अथवा गुण मिलान जैसी प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इन देशों में होने वाला प्रत्येक तीसरा विवाह भकूट दोष से पीड़ित है जिसके चलते इन देशों में होने वाले विवाहों में तलाक अथवा पति पत्नि में से किसी एक की मृत्यु की दर केवल भकूट दोष के कारण ही 33% होनी चाहिए। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि भकूट दोष कुंडलीं मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि नाड़ी दोष, गण दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 30% से 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है। इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि भकूट दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।

                इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल भकूट दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल भकूट दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय भकूट दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण भकूट दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया विवाह संबंधी कोई शुभ या अशुभ योग गुण मिलान के कारण बनने वाले दोषों की तुलना में बहुत अधिक प्रबल होता है तथा दोनों का टकराव होने की स्थिति में लगभग हर मामले में ही विजय कुंडली में बनने वाले शुभ अथवा अशुभ योग की ही होती है। इसलिए कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाला मांगलिक योग अथवा मालव्य योग जैसा कोई शुभ योग गुण मिलान में भकूट दोष अथवा अन्य भी दोष बनने के पश्चात भी जातक को सफल तथा सुखी वैवाहिक जीवन देने में सक्षम है जबकि कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाले मांगलिक दोष अथवा काल सर्प दोष जैसे किसी भयंकर दोष के बन जाने से भकूट मिलने के पश्चात तथा 36 में से 30 या इससे भी अधिक गुण मिलने के पश्चात भी ऐसे विवाह टूट जाते हैं अथवा गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं।

               इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल भकूट दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से भकूट दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले भकूट दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।

अब देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए :

चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :

अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।

चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :

भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।

चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :

कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।

गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :

यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

आइए अब किसी कुंडली में नाड़ी दोष के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से तथा किसी इस दोष के साथ जुड़े अशुभ फलों का व्यवहारिक दृष्टि से विशलेषण करें तथा इस दोष के निर्माण तथा फलादेश की सत्यता की जांच करें। जैसा कि हम जान गए हैं कि कुल मिला कर तीन नाड़ियां होतीं हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति की इन्हीं तीन नाड़ियों में से एक नाड़ी होती है, इस लिए प्रत्येक पुरुष की प्रत्येक तीसरी स्त्री के समान नाड़ी होगी जिससे प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर तीसरा पुरुष या स्त्री केवल नाड़ी दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 33% विवाह तो नाड़ी दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। उदाहरण के लिए यदि किसी पुरुष की नाड़ी आदि है तो लगभग प्रत्येक तीसरी स्त्री की नाड़ी भी आदि होने के कारण इस प्रकार के कुंडली मिलान में नाड़ी दोष बन जाएगा जिसके चलते विवाह न करने का परामर्श दिया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य लगभग किसी भी देश में कुंडली मिलान अथवा गुण मिलान जैसी प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इन देशों में होने वाला प्रत्येक तीसरा विवाह नाड़ी दोष से पीड़ित है जिसके चलते इन देशों में होने वाले विवाहों में तलाक अथवा पति पत्नि में से किसी एक की मृत्यु की दर केवल नाड़ी दोष के कारण ही 33% होनी चाहिए। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि नाड़ी दोष कुंडलीं मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि भकूट दोष, गण दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में पूरी तरह से सक्षम है। इन सभी दोषों को भी ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार में होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमें से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले में बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि नाड़ी दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार क्षति पहुंचाने में सक्षम नहीं हैं।

इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले में केवल नाड़ी दोष का उपस्थित होना अपने आप में ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल में हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल नाड़ी दोष के उपस्थित होने से ही विवाह में कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र में सफल हैं जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलों में ही वर वधू की कुंडलियों में विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण नाड़ी दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी कुंडली में किसी ग्रह द्वारा बनाया गया विवाह संबंधी कोई शुभ या अशुभ योग गुण मिलान के कारण बनने वाले दोषों की तुलना में बहुत अधिक प्रबल होता है तथा दोनों का टकराव होने की स्थिति में लगभग हर मामले में ही विजय कुंडली में बनने वाले शुभ अथवा अशुभ योग की ही होती है। इसलिए कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाला मांगलिक योग अथवा मालव्य योग जैसा कोई शुभ योग गुण मिलान में नाड़ी दोष अथवा अन्य भी दोष बनने के पश्चात भी जातक को सफल तथा सुखी वैवाहिक जीवन देने में सक्षम है जबकि कुंडली में विवाह संबंधी बनने वाले मांगलिक दोष अथवा काल सर्प दोष जैसे किसी भयंकर दोष के बन जाने से नाड़ी मिलने के पश्चात तथा 36 में से 30 या इससे भी अधिक गुण मिलने के पश्चात भी ऐसे विवाह टूट जाते हैं अथवा गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं।

इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल नाड़ी दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से नाड़ी दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान में बनने वाले नाड़ी दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।








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