देखना जिस दिन मै चला जाऊंगा
लौट कर फिर कभी नहीं आऊँगा
ढूंढ लेना मुझको तुम गुलशन में
कि गुलों में खुश्बू बन के महकूँगा
किसी कवि या शायर सा नहीं, हाँ
तेरी मुंडेर पे पंछी बन के चहकूँगा
या फिर कोई लतीफ़ा बन कर के
तेरे गुलाबी होंठो पे, मुस्कुराऊंगा
तू, कितना भी रूठ जाए मुझसे
देखना इक दिन तुझे मना लूँगा
मुकेश इलाहाबादी ---------------
लौट कर फिर कभी नहीं आऊँगा
ढूंढ लेना मुझको तुम गुलशन में
कि गुलों में खुश्बू बन के महकूँगा
किसी कवि या शायर सा नहीं, हाँ
तेरी मुंडेर पे पंछी बन के चहकूँगा
या फिर कोई लतीफ़ा बन कर के
तेरे गुलाबी होंठो पे, मुस्कुराऊंगा
तू, कितना भी रूठ जाए मुझसे
देखना इक दिन तुझे मना लूँगा
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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