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Saturday, 16 June 2018

सच तुम्हे - मिस करता हूँ

बहुत
मिस करता हूँ
तुम्हारी देहगंध को
जब
भी हरसिंगार झरता है
मेरे सहन में
रातों को

उठ - उठ के
टहलने लगता हूँ
बालकोनी में - आधी रातों को
और याद आती है
तुम्हारी खिल्ल - खिल्ल करती
अनगढ़ मोहक हँसी
तब मै तुम्हारे न होने को -
बहुत मिस करता हूँ

बहुत मिस करता हूँ
कैफ़े डे - के कोने वाली सीट
पे अकेले बैठ के कॉफी पीते हुए तुम्हे

यंहा तक कि -
बहुत मिस करता हूँ
जब तुम्हारे मेसेज या फ़ोन कॉल्स नहीं आते
या फिर ऍफ़ बी पे उपडटेस

सच तुम्हे - मिस करता हूँ
बहुत बहुत बार

मुकेश इलाहाबादी ----------------




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