08 - 0 8 -2018
सुबह से मन खिन्न था - कई बातों के ले कर। ऑफिस आया, नेट बंद था मन और खिन्न हुआ। फिर काम का बोझ
अजीब मनः स्तिथि थी। खैर दिमाग को एक झटका दिया, एक ग्लास पानी पिया, फाइलें खोली, काम शरू कर दिया
अब मन कुछ नहीं सोच रहा था - जो दिमाग में चल रहा था - चलने दे रहा था।
उधर दिमाग अपनी आदतानुसार कुछ न कुछ सोचने में लगा था -इधर हाथ कंप्यूटर में चल रहा था। अचानक
फ़ोन की घंटी बजती है।
हेल्लो
जी - मै सुमी बोल रही हूँ
किसी अनजान महिला की आवाज़ थी, पहचाना नहीं - दिमाग सोचने लगा ' सुमी ???
इस नाम का कौन है जो इस तरह से बोलेगा ' मै सुमी बोल रही हूँ ' फिर एक पुरानी परिचिता का खयाल आया लगा
वो ही होंगी - कई बार फ़ोन कर देती थीं पर इधर कई सालों से उनका कोई फ़ोन नहीं आया था लिहाज़ा , उम्मीद तो
नहीं थी फिर भी मैंने जवाब दिया " कौन सुमी नरूला ??"
" अरे मै सुमी बोल रही हूँ। सुमी, कटनी से '
फिर मैंने सोचा कटनी में तो मेरा कोइ रहता नहीं है - परिचत और फिर इस नाम का
फिर भी नहीं पहचाना - फिर उसने अपना नाम दोहराया - तब मैंने कहा ' अच्छा तुम जय पुर से बोल रही हो ??
जी नहीं मै कटनी से बोल रही हूँ। कई साल पहले ही जयपुर छोड़ दिया था '
तब मुझे याद आया - ओह "ये तो सुमी ही है " मेरी तलाश
उदास मन बल्लियों उछल गया - एक ऐसी साध पूरी हुई जो इस तरह अचानक पूरी होगी उम्मीद न थी।
फिर क्या था - बरसों की नहीं कई दशक पुरानी उदासी और बेचैनी के बादल छंट गए।
मन मयूर नाच उठा -
बात एक लम्बी कॉल के बाद ही बंद हुई - बीच में एक बार कट ज़रूर हुई पर फिर उधर से ही दोबारा और जल्दी ही
कॉल बैक हुआ -
फिर बातों का सिलसिला -
एक दुसरे ने इतने सालों में कितने थपेड़े खाए - क्या क्या न सहा - क्या न हुआ हुआ -
कुछ सारांश में कुछ विस्तार में बताया गया - ज़्यदा देर तो सुनना ही हुआ - और मै सुनना ही तो चाहता था।
खैर - टूटे हुए सिरे को इस लम्बी कॉल ने फेविकोल का जोड़ दे दिया -
एक दुसरे के नंबर सेव किये गए - आगे फिर फिर बातें होते रहने के बाद कॉल ख़त्म हुई -
पर सुबह के इसखूबसूरत कॉल की घंटी अभी शाम तक ज़ेहन में सितार सा बज रही है।
बाहर सूरज डूब रहा है - अंदर एक सूरज उगता हुआ महसूस कर रहा हूँ।
एक अरसे के बाद
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------------------------
सुबह से मन खिन्न था - कई बातों के ले कर। ऑफिस आया, नेट बंद था मन और खिन्न हुआ। फिर काम का बोझ
अजीब मनः स्तिथि थी। खैर दिमाग को एक झटका दिया, एक ग्लास पानी पिया, फाइलें खोली, काम शरू कर दिया
अब मन कुछ नहीं सोच रहा था - जो दिमाग में चल रहा था - चलने दे रहा था।
उधर दिमाग अपनी आदतानुसार कुछ न कुछ सोचने में लगा था -इधर हाथ कंप्यूटर में चल रहा था। अचानक
फ़ोन की घंटी बजती है।
हेल्लो
जी - मै सुमी बोल रही हूँ
किसी अनजान महिला की आवाज़ थी, पहचाना नहीं - दिमाग सोचने लगा ' सुमी ???
इस नाम का कौन है जो इस तरह से बोलेगा ' मै सुमी बोल रही हूँ ' फिर एक पुरानी परिचिता का खयाल आया लगा
वो ही होंगी - कई बार फ़ोन कर देती थीं पर इधर कई सालों से उनका कोई फ़ोन नहीं आया था लिहाज़ा , उम्मीद तो
नहीं थी फिर भी मैंने जवाब दिया " कौन सुमी नरूला ??"
" अरे मै सुमी बोल रही हूँ। सुमी, कटनी से '
फिर मैंने सोचा कटनी में तो मेरा कोइ रहता नहीं है - परिचत और फिर इस नाम का
फिर भी नहीं पहचाना - फिर उसने अपना नाम दोहराया - तब मैंने कहा ' अच्छा तुम जय पुर से बोल रही हो ??
जी नहीं मै कटनी से बोल रही हूँ। कई साल पहले ही जयपुर छोड़ दिया था '
तब मुझे याद आया - ओह "ये तो सुमी ही है " मेरी तलाश
उदास मन बल्लियों उछल गया - एक ऐसी साध पूरी हुई जो इस तरह अचानक पूरी होगी उम्मीद न थी।
फिर क्या था - बरसों की नहीं कई दशक पुरानी उदासी और बेचैनी के बादल छंट गए।
मन मयूर नाच उठा -
बात एक लम्बी कॉल के बाद ही बंद हुई - बीच में एक बार कट ज़रूर हुई पर फिर उधर से ही दोबारा और जल्दी ही
कॉल बैक हुआ -
फिर बातों का सिलसिला -
एक दुसरे ने इतने सालों में कितने थपेड़े खाए - क्या क्या न सहा - क्या न हुआ हुआ -
कुछ सारांश में कुछ विस्तार में बताया गया - ज़्यदा देर तो सुनना ही हुआ - और मै सुनना ही तो चाहता था।
खैर - टूटे हुए सिरे को इस लम्बी कॉल ने फेविकोल का जोड़ दे दिया -
एक दुसरे के नंबर सेव किये गए - आगे फिर फिर बातें होते रहने के बाद कॉल ख़त्म हुई -
पर सुबह के इसखूबसूरत कॉल की घंटी अभी शाम तक ज़ेहन में सितार सा बज रही है।
बाहर सूरज डूब रहा है - अंदर एक सूरज उगता हुआ महसूस कर रहा हूँ।
एक अरसे के बाद
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------------------------
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