जैसे ,
ही मै उतरता हूँ अंतरतम में
तुम भी उतर आती हो उजास बन के
या फिर बरसती हो दिव्य झरने की तरह
जिसमे नहा कर
हो जाता हूँ ताजा दम
बहुत - बहुत दिनों तक के लिए
मुकेश इलाहाबादी ------------
ही मै उतरता हूँ अंतरतम में
तुम भी उतर आती हो उजास बन के
या फिर बरसती हो दिव्य झरने की तरह
जिसमे नहा कर
हो जाता हूँ ताजा दम
बहुत - बहुत दिनों तक के लिए
मुकेश इलाहाबादी ------------
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