मेरी,
साँसे जिसके बदन की खुशबू
के साथ घुली मिली नहीं
जिसके
बदन की कोमलता को - हरारत को
मेरी हथेलियों ने महसूसा नहीं - जाना नहीं
जिसके रक्ताभ होंठो को
मेरे जलते होंठो ने छुआ नहीं
जिसे मेरी आँखों ने जी भर के देखा नहीं
ये दिल उसे क्यूँ पुकारता है
अहिर्निश ,
क्यूँ ? क्युँ ? क्युँ ?
मुकेश इलाहाबादी ------------------
साँसे जिसके बदन की खुशबू
के साथ घुली मिली नहीं
जिसके
बदन की कोमलता को - हरारत को
मेरी हथेलियों ने महसूसा नहीं - जाना नहीं
जिसके रक्ताभ होंठो को
मेरे जलते होंठो ने छुआ नहीं
जिसे मेरी आँखों ने जी भर के देखा नहीं
ये दिल उसे क्यूँ पुकारता है
अहिर्निश ,
क्यूँ ? क्युँ ? क्युँ ?
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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