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Wednesday, 15 August 2018

पुरानी, चादर में लपेट ली है

पुरानी,
चादर में लपेट ली है
तुम्हारी
थोड़ी सी हँसी
थोड़ी सी मुस्कराहट
तुम्हारे साथ बिताये ढेर सारे पलों की यादें
ढेर सारी तनहाई
थोड़ी सी उदासी
और न ख़तम होने वाली रात की कालिमा
जिस लाद चल दिया हूँ
शब्दों के अंतहीन सफर में
जंहा हैं
कहानियों के जंगल
स्मृतियों के पहाड़
मीठी - मीठी कविताओं के प्यारे- प्यारे झरने
जिनके बीच अब काफी शुकून महसूस करता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------

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