विकास के घने जंगलों में खो गया है
आदमी मज़हबी बातों में खो गया है
उजाला ढूंढ़ने निकला था इल्म का
वो इंसान अंधेरी रातों में खो गया है
रोशनी का कोई नया इंतज़ाम करो
सूरज स्वार्थ के अँधेरों में खो गया है
अन्धे - अन्धो को रास्ता दिखा रहे हैं
और आँख वाला विवादों में खो गया है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
आदमी मज़हबी बातों में खो गया है
उजाला ढूंढ़ने निकला था इल्म का
वो इंसान अंधेरी रातों में खो गया है
रोशनी का कोई नया इंतज़ाम करो
सूरज स्वार्थ के अँधेरों में खो गया है
अन्धे - अन्धो को रास्ता दिखा रहे हैं
और आँख वाला विवादों में खो गया है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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