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Friday, 17 August 2018

विकास के घने जंगलों में खो गया है

विकास के घने जंगलों में खो गया है
आदमी मज़हबी बातों में खो गया है

उजाला ढूंढ़ने निकला था  इल्म का
वो इंसान अंधेरी रातों में खो गया है

रोशनी का  कोई नया इंतज़ाम करो
सूरज स्वार्थ के अँधेरों में खो गया है

अन्धे - अन्धो को रास्ता दिखा रहे हैं
और आँख वाला विवादों में खो गया है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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