इक
बेवफा मेरे हिस्से में रहा
लिहाज़ा,
दर्द मेरे किस्से में रहा
जिस
दिन से मंज़िल ने, मुझसे मुँह मोड़ लिया
उस दिन के बाद
उम्र भर मै रस्ते में रहा
उस
चाँद के सिवा
कोइ सितारा रास न आया
लिहाज़ा,
शब् भर मै अँधेरे में रहा
मुकेश इलाहाबादी ---------------
बेवफा मेरे हिस्से में रहा
लिहाज़ा,
दर्द मेरे किस्से में रहा
जिस
दिन से मंज़िल ने, मुझसे मुँह मोड़ लिया
उस दिन के बाद
उम्र भर मै रस्ते में रहा
उस
चाँद के सिवा
कोइ सितारा रास न आया
लिहाज़ा,
शब् भर मै अँधेरे में रहा
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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