फूल सा खिल कर मैं क्या करूँगा
पत्थर बन कर मै भी ख़ुदा बनूंगा
सीने पे पत्थर रख लिया है मैंने
आज पत्थर की धड़कन सुनूंगा
तुम सोचोगे मै बहुत बोलता हूँ
आज के बाद कुछ नही बोलूंगा
मैने सुना इश्क़ इत्र का दरिया है
अब मै भी इस दरिया में बहुंगा
तुम पढो या इसे इग्नोर कर दो
पर मै तुझे हर रोज़ ख़त लिखूँगा
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,
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