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Thursday, 17 January 2019

दिलों की नज़दीकियाँ रहीं


दिलों की नज़दीकियाँ रहीं 
भले जिस्म की दूरियाँ रही 

सिर्फ अहसासों ने  बातें की   
दरम्याँ अपने चुप्पियाँ रही 

मेरी तमाम स्याह रातों में  
तेरे ख्वाबों की सुर्खियाँ रही 

जज़्बातों को कुरेदा न गया 
राख में दबी चिंगारियाँ रही 

तुम्हारे दिल की धड़कन नहीं 
साँसे सुनती सिसकियाँ रही 

मुकेश इलाहाबादी ----------

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