दिलों की नज़दीकियाँ रहीं
भले जिस्म की दूरियाँ रही
सिर्फ अहसासों ने बातें की
दरम्याँ अपने चुप्पियाँ रही
मेरी तमाम स्याह रातों में
तेरे ख्वाबों की सुर्खियाँ रही
जज़्बातों को कुरेदा न गया
राख में दबी चिंगारियाँ रही
तुम्हारे दिल की धड़कन नहीं
साँसे सुनती सिसकियाँ रही
मुकेश इलाहाबादी ----------
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