हम
दृढ़ प्रतिज्ञ हैं
"विकास " लाने के लिए
भले ही हमें उसके लिए
कितने ही ऐतिहासिक तथ्य तोड़ने मरोड़ने पड़ें
कितने ही बेगुनाहों को मौत के घाट उतरना पड़े
कितने ही प्रपंच करने पड़ें
क्यूँ कि,
जब तक "विकास" नाम की चिड़िया
हमारे देश की फुनगी में नहीं कुहकेगी
तब तक पता कैसे चलेगा हम सभ्य हो चुकी प्रजाति के लोग हैं
हम सुखी और समृद्ध हैं
चूँकि
"विकास" नाम की ये चिड़िया
प्रेम ,सौहार्द, संतोष नाम की सूखी डालियों पे नहीं
बल्कि
बड़ी बड़ी इमारतों , कारखानों , मॉल और ऑफिसों की डालियों पे ही फुदकती है
इस लिए
भले
ही हमें कितने भी
जंगल काटने पड़ें
कितने ही पहाड़ तोड़ने पड़ें
कितनी ही नदियों को सुखाना पड़े
मुकेश इलाहाबादी -----------
दृढ़ प्रतिज्ञ हैं
"विकास " लाने के लिए
भले ही हमें उसके लिए
कितने ही ऐतिहासिक तथ्य तोड़ने मरोड़ने पड़ें
कितने ही बेगुनाहों को मौत के घाट उतरना पड़े
कितने ही प्रपंच करने पड़ें
क्यूँ कि,
जब तक "विकास" नाम की चिड़िया
हमारे देश की फुनगी में नहीं कुहकेगी
तब तक पता कैसे चलेगा हम सभ्य हो चुकी प्रजाति के लोग हैं
हम सुखी और समृद्ध हैं
चूँकि
"विकास" नाम की ये चिड़िया
प्रेम ,सौहार्द, संतोष नाम की सूखी डालियों पे नहीं
बल्कि
बड़ी बड़ी इमारतों , कारखानों , मॉल और ऑफिसों की डालियों पे ही फुदकती है
इस लिए
भले
ही हमें कितने भी
जंगल काटने पड़ें
कितने ही पहाड़ तोड़ने पड़ें
कितनी ही नदियों को सुखाना पड़े
मुकेश इलाहाबादी -----------
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