पति,
और प्रेमी के बाद
उसने तलाशना चाहा
एक ऐसे पुरुष मित्र को
जिससे वो शेयर कर सके
अपने सारे भाव - विभाव
सुख - दुःख , अच्छा बुरा सब कुछ
और जिसकी नीव
देह व स्वार्थ से परे की ईंटो से बनी हो
किन्तु हर बार
और हर पुरुष मित्र की आँखों में
चाशनी में लिपटी लिप्सा
वहशीपन देख
वो उदास हो फिर से लौट गयी
अपने अंदर के एकाकीपन में
मित्रता की किसी भी आकांक्षा को
मन की दहलीज़ पे ही छोड़ के
और प्रेमी के बाद
उसने तलाशना चाहा
एक ऐसे पुरुष मित्र को
जिससे वो शेयर कर सके
अपने सारे भाव - विभाव
सुख - दुःख , अच्छा बुरा सब कुछ
और जिसकी नीव
देह व स्वार्थ से परे की ईंटो से बनी हो
किन्तु हर बार
और हर पुरुष मित्र की आँखों में
चाशनी में लिपटी लिप्सा
वहशीपन देख
वो उदास हो फिर से लौट गयी
अपने अंदर के एकाकीपन में
मित्रता की किसी भी आकांक्षा को
मन की दहलीज़ पे ही छोड़ के
मुकेश इलाहाबादी -----------
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