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Monday, 24 February 2020

कब और कौन किसको कितना अच्छा लगने लगे

सुमी ,,
कब और कौन किसको कितना अच्छा लगने लगे इसका कोई निश्चित सिद्धांत नही कहा जा सकता, कभी किसी की बोली बाणी अच्छी लग जाती है, तो कभी किसी का व्यवहार, तो कभी किसी का रुप और किसी का गुण अच्छा लग जाता है, और इन्सान उससे प्यार करने लगता है। पर अक्सर कोई ऐसा भी होता है जब अकारण ही कोई अच्छा लगने लगता है जी चाहता है उससे बोला बतियाया जाये, अपना दुख दर्द कहा सुना जाये हंसा हंसाया जाये। भले ये जानते हुये कि इससे हंसना बोलना बतियाना समाज को अच्छा न लगेगा, और यह रिश्ता बहुत दूर तक नही जायेगा फिर मन उसी के आर्कषण में बंधा रहता है। और जितनी देर का भी संग साथ होता है इंसान उसे उस व्यक्ति के साथ भरपूर जी लेना चाहता है।
ऐसा भी नही कि आप उससे मुहब्ब्त कर बैठे हों मगर ये भी है कि वो मुहब्बत से कम नही होती हां इस मुहब्बत में वासना नही होती कुछ पाने की अभिलाषा नही होती।
इस रिश्ते को कोई नाम नही होता। अक्सर ये रिश्ता तो बस जंगल के फूल की तरह खिलता है महकता और मुरझा जाता है। जिसे न कोई खाद देता है न पानी देता है न सिंचाई करता हे न गुडाई करता है न जिसके खिलने पे जमाना खुश होता है न कोई कवि गीत लिखता है। ये फूल बस खिलते हैं और पूरी त्वारा से खिलते हैं और खिल कर मुरझा जाते हैं जंगल में ही वीराने में ही जिसके गवाह सिर्फ और सिर्फ चांद सितारे होते हैं हवाएं होती हैं और फिजांए होती हैं।
दोस्त ऐसा ही कुछ तुमसे मिलने के बाद हुआ मेरे साथ तुमसे बतियाना क्यूं अच्छा लगता है मुझे नही मालुम तुमसे हर बात शेयर करने को जी क्यूँ चाहता है नहीं मालूम क्यूं जी करता है हर वक़्त तुम मेरे पास पास रहो ।
सुमी ,ये ऐसे अनुत्तरित प्रश्न हैं शायद जिनका जवाब किताबों मे नही होता अलफाजों मे नही होता बस जिन्हे जी लेना ही उसे जान लेना है। सासों की तरह अपने नथूनों में भरपूर भर लेना होता है। बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे बिना कुछ तर्क विर्तक किये।
उम्मीद है तुम इस रिश्ते के इस जंगली फूल को फिलहाल खिला रहने दोगी अपनी पूरी कोमलता के साथ पूरी खूबसूरती के साथ पूरी महक के साथ।
वो महक जिसे किसी के नथूनों को नही सूंघना है जिसकी खूबसूरती किसी को देखना नही है। जिसे सिर्फ खिलना है खिलना है और मुरझा जाना है।
मुकेश इलाहाबादी -------------

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