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Monday, 24 February 2020

मुलाकात की कोपलें फूटीं तो लगा

मुलाकात
की कोपलें फूटीं तो लगा
ईश्क़ के फूल खिलेंगे
लेकिन,
वक़्त की मार
और ज़रुरत की आँधियों ने
कोई फूल खिलने न दिया
यहाँ तक कि ,
जो उम्मीद की पौध जमी थी
उसे भी रौंद दिया।
लिहाज़ा,
सब कुछ ऊसर में तब्दील होता गया
नहीं ,, नहीं
अब रेगिस्तान हो गया हूँ ,,,,
जिसमे अब कभी भी
कोई भी फूल नहीं खिलेगा
कोई भी कली नहीं मुस्कुराएगी
कभी भी नहीं
कभी भी नहीं ,,,,,
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,

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