फ़क़त छाँव छाँव चले तो क्या चले
पाँव में छाले न पड़े तो क्या चले
पाँव में छाले न पड़े तो क्या चले
कंटीली झाड़ियों में दामन न फंसे
ऐसी राह में तुम चले तो क्या चले
ऐसी राह में तुम चले तो क्या चले
गर गुलशन ही गुलशन हो राह में
शब् व् जंगल न मिले तो क्या चले
शब् व् जंगल न मिले तो क्या चले
सफर में रहो कोई चेहरा न भाये
ऐसे कारवाँ में चले तो क्या चले
ऐसे कारवाँ में चले तो क्या चले
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,
No comments:
Post a Comment