इक पत्थर पे अपना नाम लिख आये
संग संग उसके बहुत दूर निकल आये
खवाबों की नदी कस्मे वादों की कश्ती
चाँदनी रातों में नौका विहार कर आये
आसमानी आँचल बादल से उसके गेसू
हल्की- हल्की बारिश में भीग कर आये
बैठे हैं अब हम दोनों बाँहों में बाहें डाले
हम से मत पूछो कि कितना चल आये
यूँ ही नहीं किताबे इश्क में नाम लिखा
जाने कितनी रुसुआई सह कर आये
मुकेश इलाहाबादी ------------------
संग संग उसके बहुत दूर निकल आये
खवाबों की नदी कस्मे वादों की कश्ती
चाँदनी रातों में नौका विहार कर आये
आसमानी आँचल बादल से उसके गेसू
हल्की- हल्की बारिश में भीग कर आये
बैठे हैं अब हम दोनों बाँहों में बाहें डाले
हम से मत पूछो कि कितना चल आये
यूँ ही नहीं किताबे इश्क में नाम लिखा
जाने कितनी रुसुआई सह कर आये
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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