सूरज जाने कहाँ जा डूबा है
चार सू अंधेरा है अंधेरा है
हर तरफ़ तो है धुन्ध छाई हुई
फ़िज़ा मे कोहरा है कोहरा है
घर से निकल के कहाँ जाऊँ मैं
हर तरफ़ तो पहरा है पहरा है
करके दिन भर आवारगी भौंरा
तुझ गुलाब पे ठहरा है ठहरा है
मैं तेरी आँखों मे डूब जाऊंगा
ये समंदर तो गहरा है गहरा है
मुकेश इलाहाबादी,,,
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