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Friday, 19 March 2021

जानती हो ? कभी, मेरे अंदर भी एक जीता जागता सागर था

 सुमी,

जानती हो ?
कभी, मेरे अंदर भी एक
जीता जागता सागर था
सचमुच का सागर
जिसमे
ख्वाहिशों की नावें चलती थी
ईश्क़ की मछलियाँ तैरती थी
जो अपने चाँद के साथ - साथ अठखेलियां करता
उसका चाँद
जब पूरा होता
पूरा गोल
और दिप - दिप करता
रात की स्याह चुनरी ओढ़ के
तब ये सागर खुशी से पागल हो उठता
उसके अंदर भावनाएं कुलांचे भरने लगतीं
उसके जिस्म में
ज्वार - भाटा उबलने लगता
और वो ,,
अपनी लहरों रूपी बाहें फैला
अपने चाँद को अपने आगोश में ले लेना चाहता
लेकिन चाँद हर बार दगा दे जाता
हर बार वो खिलखिला के
बादलों के पीछे मुँह छुपा लेता
और फिर
सागर उदास लौट आता
लेकिन एक दिन जब सागर को पता लगा
की उसका चाँद तो
एक छोटी खूबसूरत शान्त सी नीली झील पे
रोज़ उतर आता है
और उसके साथ छप - छप छइयां करता है
बस ,,
उसी दिन से इस जीवित सागर
हर रोज़ थोड़ा थोड़ा मरने लगा और
एक दिन वो "मृत सागर"
यानी डेड सी में तब्दील हो गया
जिसमे कोइ मछली
नहीं तैरती
कोई नाविक अपनी नाव नहीं खेता
जिसमे बड़ी बड़ी तरंगे नहीं उठती
हालाकि
इस डेड सी में
तेरा तो जा सकता है
पर डूबा नहीं जा सकता
और अब
इस सागर में
किसी चाँद के उगने से
कोई ज्वार - भाटा नहीं आता
क्यूँ की उसका चाँद
किसी झील में उतर गया है
किसी रोज़ चुपके से
इस लिए
ओ मेरी सुमी
ओ' मेरी चाँद
अब से तुम मुझे 'डेड सागर " के नाम से
पुकारा करो
"मुक्कू ' नहीं
ओ मेरी सुमी
ओ मेरी प्यारी सुमी
सुन रही हो न ?
मुकेश इलाहाबादी --------------

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