नदी किनारे
बगल में बैठते ही
उसने,
पहले तो
अपने बांये हाथ की उँगलियों को
काँधे पे सिर रखा
दूर सूरज को डूबते और
चाँद को उगते देखा
नदी की लहरों पे
दो फूलों को
एक दुसरे पे गिरते पड़ते बहते देखा
देर तक
फिर ऊब कर
काँधे से सिर उठा
अपने चिकने गालों को
शरारतन रगड़ा
"उफ़ ! तुम्हारे गाल कितने खुरदुरे हैं ??"
मैंने कहा
खुरदुरा पन ही तो है
जो अपनी जगह जमा रहने और खड़ा रहने में
सहायता करता है
वरना चिकनी सतह तो सिर्फ फिसलन देती है
ये खुरदुरा पन ही तो है जो
चिकनाई युक्त मैल को रगड़ रगड़ साफ़ करती है
मै आगे कुछ और कहता
इसके पहले उसने एक बार फिर
मेरे खुरदुरे गालों पे अपने चिकने गाल को रगड़ा
मुस्कुराई
काँधे पे सिर रखा
और देखने लगी
दो फूलों को जो एक दुसरे के ऊपर गिरते पड़ते
लहरों पे नाचते दूर जा रहे थे
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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