बैठे ठाले की तरंग ----------------
चाँद को हमने खिलते हुए देखा है
हुश्न को बेनकाब होते हुए देखा है
धान के लहलहाते हुए खेत को भी
हमने अक्शर जलते हुए देखा है
ज़र, जोरू ज़मीन की खातिर
भाई भाई को हमने लड़ते हुए देखा है
फक्त एक गुब्बारे की खातिर, बहुत बार
बच्चों को हमने मचलते हुए देखा है
ऐ मुकेश अच्छों अच्छों को कई बार, हमने
गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए देखा है
----------------------------- मुकेश इलाहबादी
चाँद को हमने खिलते हुए देखा है
हुश्न को बेनकाब होते हुए देखा है
धान के लहलहाते हुए खेत को भी
हमने अक्शर जलते हुए देखा है
ज़र, जोरू ज़मीन की खातिर
भाई भाई को हमने लड़ते हुए देखा है
फक्त एक गुब्बारे की खातिर, बहुत बार
बच्चों को हमने मचलते हुए देखा है
ऐ मुकेश अच्छों अच्छों को कई बार, हमने
गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए देखा है
----------------------------- मुकेश इलाहबादी
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