एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 22 March 2012
डूबती आखों में सवाल ज़िन्दगी का
बैठे ठाले की तरंग -------------
डूबती आखों में सवाल ज़िन्दगी का
मिला नहीं माकूल जवाब ज़िन्दगी का
तमाम हसरतों का होना था यही हश्र
मिलना फिर बिछड़ना अंजाम ज़िन्दगी का
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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