Pages

Wednesday, 23 May 2012

शोर की ज़द में पूरा शहर था

बैठे ठाले की तरंग --------------

शोर  की  ज़द में  पूरा  शहर था
 नींद  मे  वह  सोया  बेखबर  था

लोग समझे कि अलाव बुझ चूका
अन्दर इक जलता हुआ शरर था

नगीनो,सफीनो,नदियों को छुपाकर
वह अन्दर अन्दर बहता समंदर था

मै मौत के करीब  जा कर बच गया
दुआओं  मे  उसके  इतना असर था

कभी  तूफां तो कभी धूल के बवंडर
ज़िन्दगी का सफ़र, अजब सफ़र था

मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment