बैठे ठाले की तरंग --------------------
अपनी भी इक दिन कहानी लिखूंगा
टीस है कितनी पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं याद हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है रूह तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
अपनी भी इक दिन कहानी लिखूंगा
टीस है कितनी पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं याद हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है रूह तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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