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Friday, 25 May 2012

संबंधों के कैक्टस

बैठे ठाले की तरंग ------------
उग आये हैं
दिल के गमले में
संबंधों के कैक्टस
पानी नहीं
रेत उलीचता हूँ
फूल नही
कांटे उगाता हूँ
फूल सा उग के क्या होगा  ?
कांटो सा उग के देर तक रहूँगा
मुकेश इलाहाबादी -------------

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