बैठे ठाले की
तरंग -----------------
परिंदों के शहर में करूं मै उड़ान की बातें
दोस्तों की महफ़िल में दुनिया ज़हान की बातें
यायावरी में काट दी,अपनी सारी ज़िन्दगी अब
क्यूँ न करूं अपने घर और मकान की बातें
बहुत उदास उदास है अपने शहर का मौसम
आ कुछ देर छेड़ें हंसी और मुस्कान की बातें
यूँ तो लड़ने झगड़ने की अपनी फितरत नहीं
गर बात आ पड़े तो करूं मै तीरों कमान की बातें
इंसान की शिराओं में बह रहा है बाज़ार चार सूं
ग़ज़ल छोड़ क्यूँ न करूं मै नफ़ा नुक्सान की बातें
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------
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