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Thursday, 14 June 2012

खामोशी स्याह और लम्बी रात के बाद - टूटेगी


बैठे ठाले की तरंग -----
 
खामोशी
स्याह और लम्बी
 रात के बाद - टूटेगी
इस उम्मीद के साथ सोया था
किन्तु, वह
सुबह की धुप के साथ फैलती गयी
और अब
तपती दोपहर में
और गाढ़ी होकर
मौत की खामोशी के साथ
छितरा गयी है
दरवाजे, खिड़की, देहरी
मन, देह व देह के पार भी
यंहा तक कि सूख गए हैं
आंसू भी
लान में पीली पड़ती डूब की तरह ---

मुकेश इलाहाबादी -------------------- 

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