एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
Home
Thursday, 21 June 2012
गर आँचल से वक़्त की गर्द पोंछ दी होती
बैठे ठाले की तरंग ----------------------
गर आँचल से वक़्त की गर्द पोंछ दी होती
तस्वीर हमारी फिर से निखर गयी होती
यूँ वक़्त से पहले चरागे मुहब्बत न बुझता
गर आँचल से ज़माने को यूँ हवा न दी होती
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
View mobile version
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment