मौसम है बहारों का, और तू नदारत है
इसे तेरी बेरुखी समझूं या की शरारत है
आ अपने नर्म हाथ रख दे मेरे माथे पे
जान ले तेरे इश्क में कितनी हरारत है
रोज़ गुज़रता हूँ तेरे कूचे से, फिर भी
तुझसे नहीं मिलता, ये मेरी शराफत है
ज़माना जो भी कहता है, टाल जाता हूँ
इस तरह दुनिया से मैंने की बगावत है
मुकेश इलाहाबादी --
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