फूल ख़्वाबों के ही सही सजाये बैठे हैं
ज़िन्दगी को इस तरह महकाए बैठे हैं
आदतों से हम बेपरवाह ही सही, मगर
तेरी यादों को एहतियात से सजाये बैठे हैं
तुम मेरे घर एक दिन आओगी ज़रूर
इसलिए, अभी से तोहफे मंगाए बैठे हैं
चाँद तारे और आफताब सब विदा हो गए
रोशनी के लिए चरागे उम्मीद जलाए बैठे हैं
आये थे सज धज के हमने तारीफ़ न की
जनाब सिर्फ इस लिए गुस्साए बैठे हैं
तुमसे मिलके शराब से तौबा कर ली थी
बिछड़ के तुमसे जाम पे जाम चढ़ाए बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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