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Tuesday, 3 July 2012

फूल ख़्वाबों के सही सजाये बैठे हैं



फूल ख़्वाबों के ही  सही सजाये बैठे हैं
ज़िन्दगी को इस तरह महकाए बैठे हैं

आदतों से हम बेपरवाह ही सही, मगर
तेरी यादों को एहतियात से सजाये बैठे हैं

तुम मेरे घर एक दिन आओगी ज़रूर
इसलिए, अभी से तोहफे मंगाए बैठे हैं 

चाँद तारे और आफताब सब विदा हो गए
रोशनी के लिए चरागे उम्मीद जलाए बैठे हैं

आये थे सज धज के हमने तारीफ़ न  की 
जनाब सिर्फ  इस  लिए  गुस्साए  बैठे  हैं

तुमसे मिलके शराब से तौबा कर ली थी
बिछड़ के तुमसे जाम पे जाम चढ़ाए बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

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