ज़िन्दगी की बाज़ी जीते नही
हार भी हम कभी माने नही
शतरंज की बिसात के प्यादे रहे
वजीर सा तिरछा चल पाए नही
कांटो की माफिक चुभते रहे,कि
फूलों सा कभी मुस्कुराए नही
नाजो नखरे उठाना फितरत नही
दिल में तुम्हारे जगह पाए नही
समंदर की तरह हरहराता रहा
झरने की माफिक छलछलाये नही
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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