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Sunday, 7 October 2012

काश --

काश --
तुम्हारी दूधिया चांदनी हंसी को
अपनी अंजुरी मे समेट पाता ?
काश --
जब तुम आबनूशी गेसुओं को
लहराते हुए अपने नाज़ुक हाथो से
मासूम परिंदों को गुनगुनाते हुए
दाना  चुगा रहे होती हो तो
जी भर के तुझे देख पाता,
और,
तुम्हे पूरा का पूरा जस का तस
अपनी आखों मे बसा कर  -
फिर अपनी पलकें बंद कर लेता
काश,, 
जब तुम नहा कर
जलार्ध्य दे रही होती हो तो
तुम्हारे सुबह के ताज़े फूल से चेहरे पे
सूरज की किरणों सा दमक सकता

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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