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Friday, 5 October 2012

जीवन की. संध्या में


जीवन की.
संध्या में
एक बार फिर
तुम्हे याद कर लेना चाहता हूँ
पूरी त्वरा के साथ
ता कि,
तुम्हारा मिलन और विछोह
तुम्हारे  संपूर्ण स्मरण के साथ
एकाकार हो जाए
वायु के स्पर्श की तरह
और फिर मै,
मुक्त हो जाऊं
आकाश की तरह

मुकेश इलाहाबादी -------------------

 

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