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Tuesday, 27 November 2012

जब तक ह्शरते उफान पे थी

जब तक ह्शरते उफान पे थी
ज़िन्दगी हमारी तूफ़ान पे थी 

नतीज़ा अच्छा  नहीं होगा,,,,
वरना सच्ची बात जुबां पे थी

सिरफिरों ने उसकी जाँ ले ली
आस्था उसकी पुरान  में थी 

हमारी मुट्ठी में भी जँहा था
जब जवानी पूरी उठान पे थी

मरते मरते मर गया  सेठ,,,
पर जाँ तो उसकी दूकान पे थी

अलग से ------
 

समंदर बहा ले गयी सब कुछ,,
जब कश्ती हमारी मुकाम पे थी
 

मुकेश इलाहाबादी -------------

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