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Monday, 5 November 2012

ज़िन्दगी इम्तहान हो गयी

 
ज़िन्दगी इम्तहान हो गयी
बूढ़े की थकान हो गयी 

कोई  गाहक नहीं आता
गरीब की दूकान हो गयी 

परिंदे भी नहीं चहकते
हवेली वीरान हो गयी

बाढ़  के  बाद  खेती
महज़ लगान हो गयी 

बोझ बढ़ता ही जा रहा
बैल की लदान हो गयी 

लफंगे खुश हो गए कि
लडकी जवान हो गयी

फ़क़त उल्लू बोलते हैं
बस्ती शमशान हो गयी

मुकेश इलाहाबादी -------

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