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Tuesday, 4 December 2012

ये सच है - तुम जितना तफसील से

ये सच है -
तुम जितना तफसील से
और शिद्दत से
मेरे बारे में सोचती हो
शायद मै  उतना नहीं सोच पाता 
ऑफिस की आपा धापी में 
या कि 
दोस्तों की महफ़िल में
कहकहे लगाते हुए,
पर ये ज़रूर है
जब कभी मौक़ा मिलता है
कुछ भी सोचने का
चाहे वो ऑफिस जाते वक़्त का हो
या  कि रात के खाना खाने के बाद
तफसील से सिगरते पीने का वक़्त हो
या  कि सुबह शेविंग करने का वक़्त हो
तब तुम आस पास फ़ैली धुप सा
या की,
खुशबू सा
या की हवा सा
या की एक कोमल एहसास सा
ज़ेहन में उतर आती हो
और मुझे कभी उदास हो के तो कभी झटके से
तुम्हारे ख्यालों से निकल के रोज़ मर्रा के कामो में
लगा जाना पड़ता है
सच - मै तुम्हे तुम्हारी तरह शिद्दत से याद नहीं कर पाता
इस बात का गुनाहगार हूँ

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------



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