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Thursday, 28 February 2013

बड़ी मुस्किल से तो हम किनारे आये हैं

बड़ी मुस्किल से तो हम  किनारे आये हैं
नदी  की  धार  को  धता  बता के आये हैं

सुबह  से  ही  सूरज  आग  उगल  रहा  है
अपने बदन पे चन्दन  लपेट  के  आये  हैं

सूरत देख कर भरोसा करना ठीक  नहीं
साधुओं  के  भेष  मे लुटेरे  भी  आये  हैं

अब  चाँद   से  भी  लपटें  उठा  करती हैं
मूकेश चाँदनी से ही बदन पे छाले आये हैं

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

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