एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
Home
Saturday, 2 March 2013
ग़म की गठरी लादे हैं
ग़म की गठरी लादे हैं
कड़ी धूप के साए हैं
मंज़िल तो मिली नही
मील के पत्थर पाए हैं
देख के मुखड़ा दर्पण मे
खुद से खुद शर्माए हैं
ऐसा तेरा रूप सलोना
सब के सब भरमाये हैं
छत पे जब-2 आये तू
चंदा भी छुप जाए है
मुकेश इलाहाबादी ----
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
View mobile version
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment