लब पे कुरान लिये फिरते हैं
दिल मे दुकान लिये फिरते हैं
रोज कसम खाते हैं गीता की
हाथों मे ईमान लिये फिरते हैं
सत्य अहिंसा प्रेम की बाते हैं
तीर औ कमान लिये फिरते हैं
षिर छुपाने के इक छत चाहिये
तमन्ना ऐ मकान लिये फिरते हैं
गरीबी न सही गरीब मिटा दो
हुक्मरान फरमान लिये फिरते हैं
मुकेष इलाहाबादी ..............
दिल मे दुकान लिये फिरते हैं
रोज कसम खाते हैं गीता की
हाथों मे ईमान लिये फिरते हैं
सत्य अहिंसा प्रेम की बाते हैं
तीर औ कमान लिये फिरते हैं
षिर छुपाने के इक छत चाहिये
तमन्ना ऐ मकान लिये फिरते हैं
गरीबी न सही गरीब मिटा दो
हुक्मरान फरमान लिये फिरते हैं
मुकेष इलाहाबादी ..............
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