वो तो मेरी सूरत देख कर मुड़ गया पत्थर
उसने तो निशाना साध कर मारा था पत्थर
धूप पानी और हजारों चोट सह गया पत्थर
आ करके तेरे पहलू मे मोम हो गया पत्थर
जर्रा जर्रा टूट कर है सहरा हो गया पत्थर
देख इन्सानियत शर्मिन्दा हो गया पत्थर
आदम को पहला घर गुफा था दे गया पत्थर
खुदा जब सामने आया बुत बन गया पत्त्थर
भटकने से बचाता यही बनके मील का पत्थर
अपना सीना चीर के दरिया बहा गया पत्थर
अब कॉच के घर बना इंसा भूल गया पत्थर
अब आदम कांच के घर पे फेंकता है पत्थर
मुकेश इलाहाबादी ........................
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