जिनकी वजह से हम खाकसार हैं
आज भी हम उनके तलबगार हैं
लुट के भी हम उनकी नजरों पे
इजहार ऐ मुहब्ब्त के गुनहगार हैं
सौ क्त्ल कर के भी मुस्कुराते हैं
हम मुहब्बत करके शरमशार हैं
जुल्म पे जुल्म किये जाते हैं हमपे
फिर भी सभी उनके तरफदार हैं
मुकेश इलाहाबादी ...................
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