जंहा से जंहा तक देखता हूँ
झूठ और फरेब देखता हूँ
पढ़े लिखे समाज मे भी मै
लकीर के फकीर देखता हूँ
तुम्हारी कजरारी आखों मे
आंसू की दो बूँद देखता हूँ
निराशा के गहन गहवर मे
आशा का इक द्वीप देखता हूँ
मुकेश की गजल मे हरबार
इंकलाबी तहरीर देखता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------
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