मेरे घर की हर दरो दीवार गीली है,
बरसात से नहीं आसुओं से सीली है
तुम्हारे शहर का मौसम होगा गुलाबी
मेरे गुलशन की तो हर पत्ती पीली है
मुद्दत्तों बाद आज भी याद है उसकी
जिसकी ज़ुल्फ़ सुनहरी आखें पीली है
आसान नही है इस राह मे चलना
कि सच की राह बड़ी ली पथरीली है
कभी खुशनुमा और ताज़ी होती थी
अब तो शहर की हवा ज़हरीली है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
बरसात से नहीं आसुओं से सीली है
तुम्हारे शहर का मौसम होगा गुलाबी
मेरे गुलशन की तो हर पत्ती पीली है
मुद्दत्तों बाद आज भी याद है उसकी
जिसकी ज़ुल्फ़ सुनहरी आखें पीली है
आसान नही है इस राह मे चलना
कि सच की राह बड़ी ली पथरीली है
कभी खुशनुमा और ताज़ी होती थी
अब तो शहर की हवा ज़हरीली है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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