हवेलियों से हमे डर लगता है
फुटपाथ अपना घर लगता है
पक्के मकान औ चौड़ी सड़कें,
अब तो गाँव भी शहर लगता है
गर दिल में मुहब्बत नहीं तो,,,
दिया अमृत भी ज़हर लगता है
जिसमे दया औ ममता नही है
वो बिन फलों का शज़र लगता है
अपनी ग़ज़ल औ बातों से मुकेश
इक पहुचा हुआ फकीर लगता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
फुटपाथ अपना घर लगता है
पक्के मकान औ चौड़ी सड़कें,
अब तो गाँव भी शहर लगता है
गर दिल में मुहब्बत नहीं तो,,,
दिया अमृत भी ज़हर लगता है
जिसमे दया औ ममता नही है
वो बिन फलों का शज़र लगता है
अपनी ग़ज़ल औ बातों से मुकेश
इक पहुचा हुआ फकीर लगता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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