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Friday, 18 October 2013

हवेलियों से हमे डर लगता है

हवेलियों से हमे डर लगता है
फुटपाथ अपना घर लगता है

पक्के  मकान औ चौड़ी सड़कें,
अब तो गाँव भी शहर लगता है

गर दिल में मुहब्बत नहीं तो,,,
दिया अमृत भी ज़हर लगता है

जिसमे दया औ ममता नही है
वो बिन फलों का शज़र लगता है

अपनी ग़ज़ल औ बातों से मुकेश
इक  पहुचा हुआ फकीर लगता है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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