तुम्हारे आने से हंसने लगा है
उदास था घर चहकने लगा है
तुम्हारी खुशबू से कोना कोना
गुलमोहर सा महकने लगा है
सांझ होते ही उदास हो जाता,
तुझे देख मन मचलने लगा है
रंगत उड़ गयी थी जिसकी अब
वो फलाश फिर दहकने लगा है
बरफ की मानिंद जम गया था
क़तरा क़तरा पिघलने लगा है
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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