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Tuesday, 8 October 2013

तुम्हारे आने से हंसने लगा है



तुम्हारे आने से हंसने लगा है
उदास था घर चहकने लगा है

तुम्हारी खुशबू से कोना कोना
गुलमोहर सा महकने लगा है

सांझ होते ही उदास हो जाता,
तुझे देख मन मचलने लगा है

रंगत उड़ गयी थी जिसकी अब
वो फलाश फिर दहकने लगा है

बरफ की मानिंद जम गया था  
क़तरा क़तरा पिघलने लगा है

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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